बेकार है ये बजट

धरती का सीना चीर कर देश को अन्न देनेवाले किसानों को दादा के इस लाल बक्से बड़ी उम्मीदें थीं... किसान टीवी पर दादावाणी सुन रहा था... अंग्रेजी में चल रहे भाषण को जब चैनल हिंदी में बदलकर दिखा रहे थे... और जब बात किसानों की शुरु हुई तो ये उम्मीदें और बढ़ गईं... लेकिन मुश्किल से दो मिनट में ही प्रणब दा ने किसानों की समस्याओं और उनके हल को समेट दिया... और इन दो मिनटों में दादा को जो सबसे बड़ी समस्या दिखी वो थी किसानों के लिए क़र्ज़... वही क़र्ज़ जिसका ज़िक्र हर बजट में होता आया है... और किसानों के लिए सरकार की हमदर्दी इसी सरकारी क़र्ज़ के इर्द गिर्द घूमती रहती है... इस बार भी यही हुआ सरकारी क़र्ज़ पर वित्त मंत्री ने महज़ कुछ फिसदी की राहत सुझाई वो भी कुछ शर्तों के साथ... सरकारी क़र्ज़ माफी की बात तो बाद में की गई दादा ने पहले कहा कि किसानों को वक़्त पर लोन चुकता कर देने पर ब्याज में एक फीसदी राहत दी जाएगी...


इस लॉलीपॉप के बाद संसद से दादा ने दूसरा लॉलीपॉप दिया 3 लाख तक क़र्ज़ पर ब्याज दर घटाकर 7 फीसदी कर दिया... हां दादा को याद रहा कि मॉनसून देरी से आया है.. कमज़ोर है.. बारिश कम हुई... है किसानों पर मौसम की मार पड़ी है.. ख़रीफ की फसल खराब हो गई है... इसलिए प्रणब मुखर्जी ने अपने राहत के पिटारे से जो झुनझुना किसानों को दिया है.. उसके तहत उनकी लोन चुकाने की अवधि को 6 महीने के लिए बढ़ा दिया गया है...

ऐसा लगता है सरकार को किसानों का हित सस्ते लोन में ही नज़र आता है... उसकी असल समस्या को लेकर सरकार कभी सजग नहीं हुई... और किसान की बात आते ही मुद्दा क़र्ज़ का दिखने लगता... इस पर कभी नहीं सोचा गया कि क़र्ज़ लेने की नौबत ही क्यों आए... क्यों ऐसा हो कि क़र्ज़ लेकर किसान परेशान हो और आत्महत्या करे.. हालांकि दादा ने क़र्ज़माफी योजना को अगले 6 महीने तक के लिए बढ़ाने का ऐलान किया... और महाराष्ट्र में किसानों को साहूकारों के चंगुल से छुड़ाने का वादा भी किया... लेकिन ये सभी जानते हैं कि किसान सरकारी क़र्ज़ में कम और साहूकारों के क़र्ज़ में ज़्यादा फंसा हुआ है.. लिहाज़ा साहूकारों से लिए क़र्ज़ कैसे चुकता हों और बताई गई साहूकारों से छुटकारा दिलाने की बात पर सरकार की योजना क्या है.. ये साफ नहीं है..
इन सब के साथ ही सरकार किसानों को ज़्यादा से ज़्यादा क़र्ज़ देना चाहती है लिहाज़ा 2009-2010 के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में 30 फीसदी की बढ़ोत्तरी करते हुए... तीन लाख पच्चीस हज़ार करोड़ रुपये कृषि ऋण योजना के लिए रखा गया है... हालांकि सरकार ने किसी ऐसी योजना का ज़िक्र नहीं किया जिससे घाटे में चल रहे कृषि सेक्टर को उबारा जा सके... बजट में अनाजों के समर्थन मूल्य को लेकर कोई बात नहीं की गई.. और जो क़ीमत सरकार देती है वो लागत से कहीं कम है.. बजट में दादा ने कृषि विकास दर का लक्ष्य चार फिसदी तक रखा है... असल बात ये है कि कृषि विकास दर नकदी फसलों पर चलती है न कि अनाज फसलों पर... जबकि देश के किसानों का सबसे बड़ा हिस्सा अनाज फसलों पर निर्भर करता है... दरअसल कपास... दाल... तम्बाकू... जैसे नकदी फसलों के किसान सबसे ज़्यादा क़्रर्ज़ लेते हैं... और ये भी देखने में आया कि उन्ही इलाकों में किसानों ने सबसे ज़्यादा आत्महत्याएं की मसलन... महाराष्ट्र का विदर्भ इलाका... आंध्र प्रदेश.. कर्नाटक... और भी दूसरे राज्य.. और एक और दिलचस्प बात... नकदी फसलों में खाद का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है.. यानि खाद पर बढ़ाई जाने वाली सब्सिडी का फायदा सबसे ज़्यादा इन्ही किसानों को मिलता है.. खाद को लेकर बजट में जो बातें कही गई हैं वो कहीं न कहीं चार फिसदी विकास दर को हासिल करने के पीछे एक कदम है... ज़ाहिर है सरकार महज़ आंकड़ेबाज़ी में व्यस्त है न कि किसानों की असल समस्याओं को लेकर फिक्रमंद.. ज़रूरत यही है कि कृषि क्षेत्र में घट रही उत्पादन क्षमता को बढ़ाने... लागत में कमी लाने... और किसानों को उनके अनाज की सही कीमत देने पर काम किया जाए... लेकिन प्रणब दा ने इन सब में किसानों को निराश किया है... कुल मिलाकर किसानों के मामले में दादा को 10 में से दो मार्क्स...

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