कांग्रेस की छवि...

कर्नाटक की हार से कांग्रेस इस वक़्त बिलबिला गई है... बैठकों का दौर चल रहा है... नेतृत्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया गया है... और अब आनेवाले दिनों में पांच बड़े चुनावों के लिए रणनीति बनाई जा रही है... कांग्रेस को पता है कि दिल्ली चुनाव में अब उसकी वो जगह नहीं बची... पिछले दस साल का अनुभव दिल्लीवासियों को मजबूर करेगा किसी और विक्लप के लिए... और सीधा-सीधा फ़ायदा होता दिख रहा है भाजपा को... ये एमसीडी और छावनी बोर्ड चुनाव से साफ झलकता है... इसलिए कांग्रेस चाहेगी कि यहां से ध्यान हटाकर राजस्थान.. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में ख़ुद को मजबूत करे... राजस्थान में गुर्जर आरक्षण की आग एक बड़ा फर्क ला सकती है... मीणा समाज.. भाजपा समर्थक है और जाट समाज भी उसी के पीछे-पीछे... लेकिन गुर्जरों का ऊंट किस करवट बैठेगा.. कहना मुश्किल है... उसके लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों विलेन बने हुए हैं... लिहाज़ा अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यहां मायावती की वोटकटवा राजनीति काम करे... अब ऐसे में कांग्रेस के पास दो ही विकल्प हैं... या तो मायावती को साथ कर ले... या राहुल गांधी को पश्चिमी यूपी के तर्ज पर दलितों पर डोरे डालने के लिए मैदान में लाए... और कमोबेश यही हालत मध्यप्रदेश में भी दिखती है... हालांकि यहां भाजपा लॉबी थोड़ी कमज़ोर है... लेकिन अगर भाजपा उमा भारती को शामिल करने में सफल रहती है... तो कांग्रेस के लिए मुसीबत हो सकती है... ऊधर कर्नाटक की हार के बाद मीडिया भी कांग्रेस के लिए गले की हड्डी बन गया है... हर ख़बरिया चैनल से लेकर अख़बार और पत्रिकाओं में एक ही सवाल उठाया गया... क्या अब कांग्रेस के पास कोई सबल नेतृत्वकर्ता नहीं बचा? इससे भी जनता के बीच कांग्रेस की छवि पर ख़ासा असर पड़ रहा है...

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