उसके नाम पुलिस की गोलियां ही क्यों

लगता है देश में किसानों ज़िंदगी सस्ती हो गई है... जब भी उनका मुंह खुलता है तो खाने को मिलती है गोली... कभी देश में एक नारा हुआ करता था... जय जवान.. जय किसान... लेकिन आज किसान वो तबका है जो रोता है... तो सत्ता अपनी आंखें फेर लेती है... कुछ कहने के लिए अपनी किस्मत के सही फैसले के लिए सड़क पर उतरता है... तो उसके ऊपर पुलिस की लाठियां बरसती हैं... और उसकी ज़मीन... उसकी धरती ही ऐसे फैसले लिखती है... किसानों की ज़मीन से निकली आग देश के कोने-कोने में फैली है... आंध्र प्रदेश के निज़ामाबाद से लेकर... पश्चिम बंगाल के सिंगूर और नंदीग्राम तक... और कर्नाटक के हावेरी से लेकर हरियाणा के गुड़गांव तक... हर जगह किसान लाल रंग का गवाह बना...

इस बार ज़ख़्मों का नया घर बना है ग्रेटर नोएडा... किसान अपने ज़मीन की माकूल क़ीमत चाहते हैं... उन्हे उम्मीद थी कि सरकार उनकी सुनेगी... और बाज़ार दर से उन्हे मुआवज़ा दिया जाएगा... फरवरी 2006 में सरकारी हुक्मरानों ने इन्हे आश्वस्त किया था... "अभी जो मुआवज़ा मिल रहा है किसान उसे ले लें, बाद में बाज़ार की दर से मुआवज़े का एरियर दे दिया जाएगा"... किसानों ने इससे आश्वस्त होकर मुआवज़े को स्वीकार कर लिया... बाद में जब एरियर के बावत कोई कार्रवाई महीं की गई तो किसानों अपनी बात रखने के लिए प्राधिकरण के दरवाज़े पर दस्तक देनी पड़ी... लेकिन बार-बार खटखटाने पर भी दरवाज़ा नहीं खुला... फिर एक दिन किसानों का गुस्सा प्राधिकरण के दफ़्तर में फूटा... उन लोगों ने वहां तोड़फोड़ की... उस वक़्त कहा गया कि ऊंचे स्तर पर बात चल रही है... और जल्द ही इसे सुलझा लिया जाएगा... लेकिन 11 अगस्त को प्राधिकरण की बैठक में इन आठ गांवों को छोड़ दिया गया... उनके हक़ में कोई फैसला नहीं हुआ... बाद में उन्हे फुसलाने के लिए 850 रुपए प्रति स्वायर मीटर की जगह... 200 रुपए प्रति स्क्वायर मीटर की दर से मुआवज़ा देने का फैसला लिया गया...

ऐसा सुनना था कि किसानों का गुस्सा सैलाब बन गया... नाराज़गी इस हद तक थी कि सैकड़ों किसानों ने हंगामा शुरु कर दिया... एक तरफ सैकड़ो किसान थे.. और दूसरी तरफ यूपी पुलिस... दोनों के हाथों में हथियार थे... पुलिस पहले लाठियां लेकर किसानों पर टूटी... किसानों ने पत्थरों से जवाब दिया... पुलिस ने हवा में गोलियां चलाईं... किसान पीछे हटने को तैयार नहीं थे... आंसू गैस के गोले छोड़े गए... किसान कुछ तितर-बितर हुए लेकिन फिर एक जुट होकर पुलिस को दौड़ा लिया... ऐसा लग रहा था कि पुराने ज़माने का कोई युद्ध दृश्य हो... किसान और पुलिस आमने सामने अपनी-अपनी फौज के साथ खड़े थे... फिर अचानक दोनों तरफ से गोलियां चलनी शुरु हुईं... कई धराशाही हुए... कुछ पुलिस वाले और बहुत किसान...

देश में प्रदर्शन तो कई जगहों पर होता है... कभी प्रदर्शन में नेता शामिल होते हैं... कभी देश का आम आदमी... नेता प्रदर्शन करता है... पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़ता है... तो उसके ऊपर अधिक से अधिक पानी की बौछारें मारी जाती हैं... उनसे बात-चीत की कोशिश की जाती है... लेकिन जब आम आदमी अपनी बात रखने के लिए थोड़ा उत्तेजित हो जाता है तो... उसके नाम पुलिस की गोलियां ही क्यों होती हैं... ग्रेटर नोएडा में भी किसानों से बात की जा सकती थी... उनकी बातों को सुना जा सकता था... शायद प्रशासन ने शांत होकर ऐसा किया होता.. तो आज हालात ऐसे ना होते...

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