अर्थव्यवस्था की उल्टी चाल

हाल ही में गृहमंत्री पी चिदंबरम ने दावा किया था कि भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है... और भारत ने गिरावट के दौर में भी सात प्रतिशत की विकास दर हासिल कर रखी है... ये बड़ी बात है...

सही है... पूर्व वित्तमंत्री और मौजूदा गृहमंत्री मंत्री की बातें वाकई बहुत बड़ी-बड़ी थीं.. और ये बड़ी-बड़ी बातें.. सिर्फ बातें रहकर रह गई... जिस 7 फिसदी की विकास दर को लेकर मंत्री महोदय दम भर रहे थे... वो 2008-2009 की तिसरी तिमाही की रिपोर्ट पांच फिसदी के पास चली गई है... 7.6 फिसदी से गिरकर 5.3 फिसदी यानि कुल 2.3 फिसदी की भारी गिरावट


ये अर्थव्यवस्था की उल्टी चाल है... 2007-2008 में इसी तिमाही के लिए सकल घरेलु उत्पाद विकास दर 8.9 फिसदी थी... और पांच सालों के विकास दर का औसत 8.8 फ़िसदी था... भारत दुनिया की तेज़ी से विकास दर हासिल करनेवाले देशों में तीसरे नम्बर पर था... लेकिन आज आलम कुछ और है... चिदम्बरम को उम्मीद है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत 9 फिसदी विकास दर को हासिल करने में कामयाब रहेगा... लेकिन उनकी उम्मीदें.. उनके दावे... धड़ाम होते दिख रहे हैं...

विकास दर में गिरावट की अहम वजय है औद्योगिक उत्पादन में आ रही कमी... दिसंबर 2008 में ऑद्योगिक उत्पादन सूचकांक में दो फ़िसदी की गिरावट दर्ज की गई थी... और उत्पादन में वृद्धि दर का औसत 3.2 फिसदी रहा... जबकि विकास दर के लिए जो अनुमान लगाए जा रहे थे वो सालान औद्योगिक उत्पादन वृद्धि दर का औसत 4.2 फिसदी मान कर किया जा रहा था... जबकि कंज्यूमर ड्यूरेबल्स में 12.8 फिसदी की गिरावट हुई...

गिरती अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने के लिए कई क़दम उठाए गए... आरबीआई ने अपनी तरफ़ से कदम उठाए.. सरकार ने भी अपनी ओर से कदम उठाए... सरकार ने दिसम्बर 2008 में पहला राहत पैकेज दिया.. फिर जनवरी 2009 में दूसरा पैकेज दिया... इसके बाद भारतीय अर्थजगत ने अंतरिम बजट से भी कुछ उम्मीद लगा रखी थी... लेकिन उसमें कोई राहत पैकेज नहीं लाया गया

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