अपहरण का कारोबार

आज पटना में लोग सड़कों पर उतरे और जमकर हंगामा किया... ये हंगामा अपहरण के एक मामले को लेकर हुआ... दो नाबालिग़ बच्चों ने एक मासूम का अपहरण किया... फिरौती मांगी और फिरौती न मिलने पर उसकी हत्या कर दी गई... बिहार में अपहरण का ये पहला मामला नहीं है...


कहा जाता है कि दुनिया में ज़िंदा रहना है तो कर्म करना होगा.... लेकिन अगर बिहार में रहना है तो ज़िंदा रहने के लिए किस्मत ज़रुरी है... हाल के सालों में यहां पनप रहा अपहरण उद्योग तो यही इशारा करता है... राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2007 में अपहरण के दो हज़ार पांच सौ तीस मामले आए... जबकि पटना हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक रिपोर्ट में बताया गया कि 2007 के पहले छै महीनों में ही बिहार में 2217 लोगों का अपहरण किया गया... और जुलाई 2006 से जून 2007 के बीच 4849 लोगों का अपहरण किया गया... हालांकि 2008 में अपहरण के आंकड़ों में कमी आई... लेकिन 2009 में ये आंकड़ें फिर बढ़ने लगे... अदालत की एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 1 जनवरी से 31 मार्च 2009 के बीच अपहरण के 903 मामले दर्ज किए गए... जिनमें 333 मामले जनवरी, 361 मामले फरवरी और 209 मामले मार्च महीने में दर्ज किए गए.......
ये आंकड़े तो यही बताते हैं हैं कि बिहार में अपहरण ने कुटीर उद्योग का दर्जा हासिल कर लिया है... और यहां अपहरणकर्ताओं के निशाने पर डॉक्टर, ठेकेदार, व्यापारी और स्कूली बच्चे हैं... पहले तो अपहरण का ये डर छोटे शहरों और कस्बों तक सीमित था... लेकिन अब ये डर सभी बड़े शहरों तक पहुंच चुका है... इस डर के चलते लोग अपने बच्चों को बोर्डिंग स्कूल में भेज रहे हैं...

अब सवाल ये उठता है कि अपहरण की इस संस्कृति के पीछे वजह क्या है... अगर इसे सामाजिक और आर्थिक ढांचे से जोड़कर देखें तो जिस तरह के सामाजिक और आर्थिक बदलाव बिहार ने हाल के दिनों में देखें हैं... उसी का नतीजा है यहां अपहरण एक उद्योग की तरह तेज़ी से पनप रहा है.... अपहरण के कारणों में एक बड़ा कारण राजनीतिक गंदगी भी है... जिसमें बेरोज़गार युवक भटककर आते हैं और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में ख़ुद का वजूद बनाने की कोशिश में लग जाते हैं... इसके अलावा बिहार में शादी भी अपहरण की एक बड़ी वजह है... राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की साल 2007 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में सताइस हज़ार पांच सौ इकसठ मामले अपहरण के आए.. जिनमे से बारह हज़ार आठ सौ छप्पन मामले विवाह से जुड़े हुए हैं... इनमें महिलाओं की संख्या ज़्यादा है.... लेकिन अगर बिहार के आंकड़ों पर ध्यान दें तो 1268 पुरुषों का अपहरण किया गया जबकि अपहरण के मामलों में महिलाओं की संख्या 1262 थी... इनमें से 209 पुरुषों का अपहरण ज़बरन शादी कराने के लिए किया गया... जिनमें ले तीन पुरुषों की उम्र 50 साल से ज़्यादा थी...
बिहार में अपराधियों को अपने आपराधिक नेटवर्क को बढ़ाने.. उसे संचालित करने के लिए पैसों की ज़रुरत होती है... और उसे पूरा करने के लिए अपराधियों को अपहरण के ज़रिए फिरौती हासिल करना आसान तरीका लगता है... ये बड़ी अजीब बात है कि 2007 में अपहरण के बढ़ते कारोबार को देखते हुए इंश्योरेंस कम्पनियों में अपहरण का बीमा करने की सुगबुगाहट आने लगी थी... बीमा कम्पनियों ने इसके लिए मसौदा भी तैयार कर लिया था... जिसके तहत किसी बीमाकृत व्यक्ति के अपहरण होने पर फिरौती की रकम बीमा कम्पनी देती... इस पर चारो ओर से आपत्ति जताई गई जिसके बाद ये मसौदा हक़ीकत में ज़मीन पर नहीं आ सका.. लेकिन इस तरह का मसौदा बनना ही बता देता है कि देश में अपहरण का व्यवसाय किस हद तक बिमारी का रुप ले चुका है...

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