आ गए बदरा
पहले की अटखेलियां... ललचाया बार-बार आकर... लेकिन आख़िरकार झुक ही गए ये काले बदरा... घुमड़ घुमड़ कर आए रे बदरा... कभी रिमझिम तो कभी निर्झर... बरस रहे हैं काले बादर... सांवरे सजे बादरों ने आसमान के अंगारों को रोक दिया है... रिमझिम फुंहारों ने एक नया संगीत बिखेर दिया है... भीज गई है तपती धरती... भीज गए हैं तन-मन... बारिश की दस्तक से खिल उठा है हर उपवन... बूंदों की बौझार का मज़ा लेकर करते हैं सब इसका स्वागत....
कुछ दिन पहले थी पागल धूप की प्रचंड गर्मी... लेकिन पहले तो काले मेघा की सखा... पवन ने पारे पर लगाम लगाई... फिर मेघा की घनघोर घटाओं ने बारूदी पानी की झड़ी लगा दी.... पैंतालिस डिग्री तापमान से पारा... अब तीस के आस-पास है आया.... झूलते पेड़ों के साथ ठंडी बूंदों ने सबको राहत पहुंचाया... अभी तो ये मॉनसून की अंगड़ाई है... बरखा रानी की ये तो अभी तरुणाई है... अभी तो पूरा महीना फ़िज़ा में बारुदी बूंदें धूल से पटी धरती को छूती रहेंगी... और वो माटी की महक बिखेरती रहेंगी... बरसो मेघा तब तक बरसो जब तक रहे हमारी उम्मीद... और हमेशा बनी रहे सामान्य पारे की तस्वीर...
कभी किसी बुज़ुर्ग ने कही थी एक कहावत... आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत।... नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत। यानि आषाढ़ की पूर्णिमा को अगर बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो ये साल बहुत सुखद बीतेगा... और अभी तो आषाढ़ की पूर्णिमा आनेवाली है... और फिर सांवरिया बादरों के साथ ठंडी ठंडी बूंदे पूरी फिज़ा पर छानेवाली हैं...
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