दिल्ली में पूर्वांचली मंत्री क्यों नहीं?


पूरबियों ने दिल्ली की राजनीति में हमेशा अहम भूमिका निभाई है... पूरी दिल्ली में फैले पूर्वांचलियों की संख्या है करीब 40 लाख..... और इन्होने हर बार सियासी गणित में भारी उलटफेर दिखाया है... वो पूर्वांचलियों का ही दम था जिसने 1998 में बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था.. और कांग्रेस को मौका दिया था... दिल्ली की 70 में से तीस सीटों का गणित यही 40 लाख वोटर्स तय करते हैं... चुनाव के वक़्त इन वोटर्स का वोट लेने के लिए तो पार्टियां पूरबियों के साथ होती हैं... लेकिन जब बात कैबिनेट में जगह देने की होती है... तो इन नेताओं को भुला दिया जाता है... इतिहास गवाह है कि 1993 से अब तक तीन विधानसभा देख चुकी दिल्ली ने किसी पूर्वांचली नेता को मंत्री के तौर पर नहीं देखा... और तीसरी बार सत्ता पर क़ब्ज़ा जमानेवाली कांग्रेस पूर्वांचलियों के वोट बैंक को पहचानती है... इसीलिए 70 सीटों में से 9 सीटों पर पूरब के नेताओं को खड़ा किया... उनमें से आठ ने जीत दर्ज़ कर अपनी उपस्थिति ज़ाहिर की है... सवाल ये उठता है कि जो तबका दिल्ली की आबादी का एक तिहाई हिस्सा है... उसके प्रतिनिधित्व को दिल्ली कैबिनेट में क्यों नज़रअंदाज़ किया जाता है...

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