टूटते क़िले के संरक्षक

नितिन गडकरी को बीजेपी का वो जहाज़ मिला है... जिसमें कई छेद हैं... और अब इस नए कप्तान के सामने चुनौती है कि वो इस जहाज़ को डूबने से कैसे बचाए... हालांकि इससे पहले पुराने कप्तान जब एक छेद बंद करते तो दूसरे छेद से कमल के जहाज़ में पानी घुसने लगता था... लिहाज़ा देखना दिलचस्प होगा कि गडकरी इन छेदों को कैसे बंद करते हैं...

कमल के जहाज़ में पहला छेद - पार्टी में गुटबाज़ी

वाजपेयी के जाने के बाद बीजेपी वो सल्तनत बन गई... जिसकी सीमाएं लगातार सिमट रही थीं... गुटबाज़ी और बग़ावती तेवर इस कदर मुखर होने लगे कि दिल्ली की सल्तनत दिल्ली तक ही सिमट गई... लिहाज़ा गडकरी के लिए इस सल्तनत को फिर उसी मुकाम तक ले जाना बेहद मुश्किल नज़र आता है... और इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा आडवाणी का गुट... हालांकि गडकरी को कमान देने से पहले ही आडवाणी ने ये साबित कर दिया है कि बीजेपी में अगर कोई वाणी चलेगी तो वो सिर्फ और सिर्फ आडवाणी की वाणी होगी... आडवाणी ने विपक्ष के नेता पद को तो छोड़ दिया लेकिन उनकी शक्तियां उसी तरह बरकार हैं... कहने का मतलब यही है कि गडकरी जो कुछ करेंगे बीजेपी के इस बुढ़े शेर के इशारे पर ही करेंगे... और इशारों इशारों में आडवाणी ने गडकरी को आशीर्वाद देकर इसे पुख़्ता भी कर दिया...

कमल के जहाज़ में दूसरा छेद - विचारधारा और व्यवहारिकता की जंग

गडकरी के अगली मुसीबत है पार्टी की विचारधारा और व्यवहारिकता में चल रही जंग... संघ के इशारे पर चलनेवाले संगठन की विचारधारा हमेशा गुम दिखी... कोई व्यापक लक्ष्य नहीं दिखता... लिहाज़ा लगातार पार्टी में मूल्यों का क्षरण होता आया है... जिसका असर भाजपा के वोट बैंक पर पड़ा है... इसी लिए आडवाणी चाहते थे कि पार्टी अपनी विचारधारा के साथ ही व्यवहारिकता पर भी काम करे... यानी मुस्लिमों और दलितों को नज़रअंदाज़ न किया जाए... अब गडकरी के लिए मुश्किल ये है कि संघ की विचारधारा और संगठन की व्यवहारिकता को एक साथ कैसे ले चला जाए... इस असमंजस में गडकरी अगर बैलेंस बना ले गए... तो ही जहाज़ का ये छेद बंद हो पाएगा...

कमल के जहाज़ में तीसरा छेद - पार्टी में चल रही प्रतिस्पर्धा

बीजेपी का ये छेद सबसे ख़तरनाक है... छोटे से छोटा कार्यकर्ता बीजेपी के ऊंचे से ऊंचे पद तक पहुंचना चाहता है... और वो इसके लिए कुछ भी करने को तैयार भी है... प्रतिस्पर्धा यहां तक बढ़ गई है कि पार्टी में युवाओं को सही मौका नहीं मिलता... और बुज़ुर्गों को सम्मान नहीं मिलता... हालांकि नितिन गडकरी अपने मिलनसार व्यवहार के लिए जाने जाते हैं... लेकिन पूरी पार्टी को साथ लेकर चलना एक अलग चुनौती है... और इस नए कप्तान के जहाज़ में प्रतिस्पर्धा का ये छेद तेज़ी से बढ़ भी रहा है... जिसमें संघ का दखल भी अहम योगदान दे रहा है... लिहाज़ा गडकरी को सामंजस्य बिठाकर काम करना होगा... तभी वो बीजेपी के जहाज़ को फिर से खड़ा कर सकेंगे...

Comments

  1. तब क्‍या होगा जब जहाज का बंठाधार हो जायेगा. तब 'जैसे उडि जहाज के पंछी ...' कहने वाला मरख समझा जावेगा.


    बढिया आलेख, धन्‍यवाद.

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